प्रतापगढ़

हातम पर ब्लॉक स्तरीय आयोजित हुआ गैर नृत्य 

 

गैर नृत्य आदिवासियों का वीरता का प्रतीक है: मांगीलाल निनामा

प्रतापगढ़। फसल पकने के बाद में आदिवासियों में होली मनाने की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है होली के बाद हातम का कार्यक्रम होता है इसके उपलक्ष्य में गैर नृत्य किया जाता है सातमहुडी पंचायत में महुड़ी पाड़ा मालकी मातते ब्लॉक स्तरीय गैर नृत्य का आयोजन हुआ। आदिवासी संस्कृति को बचाने के लिए काम कर रहे भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा के पूर्व राष्ट्रीय संयोजक मांगीलाल निनामा ने बताया की पहले आदिवासियों में परंपरा थी कि युद्ध की तैयारी या धाडा डालने के लिए जाना उसकी तैयारी के दौरान गोल बनाकर ढाल तलवार लकड़ी एवं माथे पर पगड़ी उसके ऊपर गोपन बांधकर ढोल कुंडी एवं तांबे की थाली को बजाया जाता था और उसकी ताल पर नृत्य किया जाता था। पहले आदिवासी कबीलाई व्यवस्था में एक कबीला दूसरे कबीले के ऊपर हमला करता था या अन्य कबीला भी हमला करता था तो उसकी सुरक्षा के लिए भी यह तैयारी की जाती थी। जिसमें यह था कि कबीला के मुखिया को सुरक्षा देने के लिए बीच में बैठा दिया जाता था और चारों तरफ गोल बनाकर के गैर नृत्य किया जाता था ताकि बाहर का शत्रु अंदर जाकर मुखिया के ऊपर हमला नहीं कर सकता था इसके अलावा इसमें यह भी था कि हमलावर कबीला गोले के अंदर बैठे मुखिया के ऊपर कैसे हमला कर सकते हैं ।
सामाजिक कार्यकर्ता रमेश निनामा ने बताया की वर्तमान में गैर नृत्य का रूप कुछ हद तक बदला है लेकिन हमारी कोशिश है मूल रूप में ही इसको जीवित रखा जाए होली पर जा होली जलाई जाती है वहां पर हाथ में डंडे लेकर ढोल कुंडी थाली बजाकर खेला जाता है।
इसके अलावा कुछ गांव के समूह जिसको पाल बोला जाता है पालों में अभी भी होली के बाद पाचम पर गैर खेला जाता है उसको पारंपरिक तरीके से *राड* भरना कहते जहां पर पालो के मुखिया गमेंती मौजूद रहते हैं उनकी देखरेख में ही राड भरी जाती है।
जो कलाकार इस नृत्य में शामिल होते हैं उनको गेरिये बोला जाता है और जिस गांव का प्रतिनिधित्व किया जा रहा है उसे गांव की टोली एक ही सांस्कृतिक एवं पारंपरिक वेशभूषा में रहती है गेरिये गैर नृत्य की तैयारी के लिए कई दिनों से तैयारी करते हैं पैरों में घुँघरू बांधे जाते हैं जब नृत्य चलता है तो उनकी आवाज बहुत ही मधुर और अलग ही होती है। इसके नृत्य को पूरे होश हवास में करना पड़ता है ढोल कुंडी और थाली की ताल पर गेरिये एक हाथ में लकड़ी दूसरे हाथ में तलवार से नृत्य करते है और बड़े ही बारीकी से अंदर बाहर आगे पीछे होते हैं जरा सी भी चूक होती है तो लगने की संभावना होती है लेकिन अभी तक ऐसा कोई प्रकरण नहीं आया कि गैर नृत्य करते हुए किसी को तलवार लगी हो या किसी को चोट आई हो यह आदिवासी समुदाय का वंशागत नृत्य कला है इसकी कोई स्पेशल ट्रेनिंग नहीं होती है।
रमेश निनामा आदिवासी सांस्कृतिक विरासत एवं सांस्कृतिक रीति रिवाजो पर पर पर रिसर्च कर रहे हैं निनामा ने आगे बताया कि हातम सप्तमी पर विशेष रूप से यह कार्यक्रम आयोजित होते हैं हालांकि अपने- अपने पालो के मुखिया गमेती द्वारा तय तिथियों पर आयोजित किया जाता है कुल मिलाकर यह होली के उपलक्ष में ही मनाया जाता है।
इस कार्यक्रम में कई गांव के पारंपरिक मुखिया सभी राजनीतिक पार्टियों के समर्थित आदिवासी जनप्रतिनिधि सामाजिक कार्यकर्ता एवं गैर नृत्य का लुफ्त उठाने के लिए आदिवासी समुदाय के अलावा अन्य समुदाय के जनप्रतिनिधि व्यापारी सामाजिक विश्लेषक एवं शुभचिंतक उपस्थित रहे।

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